नौनिहाल देश के भविष्य होते है | समाज, राष्ट्र का निर्माण इन नोनिहालों के ऊपर ही निर्भर करता है | समाज, राष्ट्र को समर्थ, सशक्त एवं सुसंस्कारित बनाने के लिए बाल निर्माण अत्यंत आवश्यक है |
आज वर्तमान में बच्चे का जन्म प्राय: एक आकस्मिक घटना के रूप में हो रहा है । माता पिता जिम्मेदारी से अनभिज्ञ होते है । बच्चों का निर्माण कैसे किया जाय इसका पूरा ज्ञान प्राय: माता पिता को नहीं होता । साधन सुविधाएं जुटाना ही उनका प्रमुख कर्तव्य है ।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली जिसमें केवल किताबी ज्ञान देती है , व्यवहारिक ज्ञान का अभाव होने के कारण, विद्या या नैतिक मूल्यों, जीवन मूल्यों से रहित, राष्ट्र के, धर्म के प्रति, संस्कारों के प्रति आस्थावान या निष्ठावान नहीं बना पाती । परिणाम स्वरूप लगभग 80% बच्चे जिद्दी, बात न मानने वाले, क्रोधी, चिड़चिड़े, तनाव से ग्रसित, पढ़ाई में मन न लगना, मोबाईल या टीवी मे लगे रहना, समान उठाकर फैकना, जरा से बात पर आत्म हत्या करना, उद्दण्डता, उच्छृंखलता और अनुशासनहीनता, उनके चरित्र की झाँकी ले तो बचपन से ही अश्लीलताओं, वासनाओं, दुर्व्यसनों की दुर्गन्ध उड़ती दिखाई देगी। छोटे-छोटे बच्चों को बीड़ी पीते नशा करते है । युवतियों के पीछे अश्लील शब्द उछालते है । अपराधी बालकों ने आज सारे समाज को ही कलंकित करके रख दिया है । न अभिभावकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा और न समवयस्कों के साथ प्रेम और सहयोग । अध्यापक और बाजार में बैठे दुकानदार उनके लिये एक समान हैं । कुछ शेष रहा है तो फैशन, शौकीनी, सिनेमा, ताश, चौपड़ और मटरगस्ती ।
इसलिए बच्चों का निर्माण इसी उम्र से होना अति आवश्यक है, जिससे वे अपने आप को समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग समझेंगे | वे जो कुछ भी सोचे, जो भी करे, समाज एवं राष्ट्र को ध्यान मे रख कर करें उनके अंदर सामाजिक भावना का विकास हो | उनके अंदर आपराधिक भावना का विकास ना हो |
बालमन मे निर्माण संभव हैं | यह निर्माण बच्चों में जीवन विद्या का शिक्षण जिसमे प्रात: जागरण से लेकर शयन तक की दिनचर्या में मानवीय मूल्यों के अभ्यास को समावेश से ही संभव है । नियमित अभ्यास व आचरण में उतर जाने पर ये छोटे-छोटे संस्कार बच्चों को महानता के राज मार्ग का अनुगामी बना देते हैं ।
एसे प्रखर, प्रतिभाशाली, सम्य, सुसंस्कृत एवं समुन्नत मन चाही संतान हेतु बालकों का मनोविज्ञान एवं उनके निर्माण एवं विकास हेतु जानकारी इस website पर उपलब्ध है और वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी की पुस्तके भी उपलब्ध है |