युग निर्माण योजना मिशन परिचय
युग निर्माण योजना,
नवनिर्माण की अभिनव योजना है, जिसकी
संकल्पना वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा मथुरा में
आयोजित सन 1958 के सहस्रकुंडीय गायत्री महायज्ञ के समय की गई थी। व्यक्ति,
परिवार व समाज निर्माण का लक्ष्य लेकर यह अभियान उन्होने सन
1962 में गायत्री तपोभूमि, मथुरा
से आरम्भ किया ।
स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की अभिनव रचना का लक्ष्य पूरा करने
के लिए विगत कई दशकों से संचालित यह आंदोलन पूरे संसार में चलाया जा रहा है । प्रत्येक विचारशील व्यक्ति के लिए यह योजना अपनाएं जाने
योग्य है ।
व्यक्ति के परिवर्तन से ही समाज, विश्व
एवं युग का परिवर्तन सम्भव है।
उद्देश्य
युग निर्माण योजना का
उद्देश्य व्यक्ति, परिवार
एवं समाज की ऐसी अभिनव रचना करना है, जिसमें मानवीय आदर्शों का अनुकरण करते हुए सब लोग प्रगति, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर हों । इसे दूसरे शब्दों
में ‘मनुष्य में देवत्व का उदय’ एवं ‘धरती
पर स्वर्ग का अवतरण’ एवं
सतयुग की वापसी का अभियान कह सकते हैं
युग निर्माण का कार्य तीन
क्रांतियों के माध्यम से
1.
नैतिक
क्रांति,
2.
बौद्धिक
क्रांति,
3.
सामाजिक
क्रांति
जिनके माध्यम से सतयुगी
वातावरण उत्पन्न करने का प्रबल प्रयास इस आंदोलन द्वारा किया जा रहा है । हम बदलेंगे, युग बदलेगा", "हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा - यह इस आंदोलन का उद्घोष (नारा) है । युग परिवर्तन का आधार, विचार परिवर्तन है । वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, जीवन में उत्कृष्टता लाने का प्रचंड पुरुषार्थ युग निर्माण
योजना के ‘शतसूत्री’ कार्यक्रमों द्वारा किया जा रहा है । युग
निर्माण योजना से जुड़े लाखों परिजन नियमित रूप से प्रतिदिन एक घंटा समयदान एवं
अंशदान करते हुए युग
निर्माण योजना के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं । समयदानी, जीवनदानी प्राणवान परिजन ही इस योजना के आधार स्तंभ हैं तथा
प्रचारात्मक, रचनात्मक और
सुधारात्मक कार्यक्रमों को सफल बनाने में लगे हैं । देश, धर्म, समाज, संस्कृति, राष्ट्र
एवं विश्व के उत्थान एवं कल्याण के लिए आठ आन्दोलन (साधना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलंबन, पर्यावरण संवर्धन, दुर्व्यसन-कुरीति उन्मूलन, नारी जागरण
एवं आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी) जैसे अनेक कार्यक्रमों का सफल संचालन हो रहा है
। धर्मतंत्र
को, लोक शिक्षण का माध्यम बनाते हुए गायत्री उपासना, यज्ञ, संस्कार, पर्व त्यौहार आदि के द्वारा विवेकपूर्ण विचारधारा जनमानस के
लिए प्रस्तुत की जाती है ।
अध्यात्म के विज्ञान सम्मत स्वरूप को भी यहां मान्यता मिली है तथा संस्कृति, सभ्यता के उत्कृष्ट स्वरूप को जीवन जीने की कला के रूप में
अपनाया गया है।
समाज में फैली
दुष्प्रवृत्तियों, अंधविश्वासों, कुरीतियों, मूढ़
मान्यताओं, कुप्रचलनों एवं
दुर्व्यसनों को मिटाने में बड़ी सफलता मिली है। सत्प्रवृत्तियों की स्थापना, परिष्कृत धर्मधारणा, आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता
की प्रतिष्ठापना में भी यह आंदोलन सफल रहा है।
युग निर्माण योजना (विचार
क्रान्ति अभियान) के तीन कार्यक्रम
हैं -
1. व्यक्ति निर्माण – अर्थात गुण,
कर्म, स्वभाव की दृष्टि से मानवीय विशेषताओं
से परिपूर्ण व्यक्तित्व का विकास । व्यक्ति के भीतर उसके
गुण कर्म स्वभाव में घुसी हुई अवांछनीयता एवं दुष्प्रवृत्तियों को हटाया जाना है । व्यक्ति निर्माण के सूत्र हैः- उपासनाआत्म साधना,
लोक आराधना, समयदान व अंशदान।
2. परिवार निर्माण - व्यक्ति निर्माण होगा उन्हीं से उनके परिवारों को भी
निर्माण होगा। इसके लिए पारिवारिक स्तर पर-
सामूहिक उपासना सामूहिक स्वाध्याय, परिवार में संस्कार परम्परा की स्थापना, पारिवारिक गोष्ठी, विवाहितों के विवाह दिवस संस्कार प्रत्येक आदि के माध्यम से परिवार निर्माण किये जाने की
प्रक्रिया चल रही है।
3. समाज निर्माण - श्रेष्ठ व्यक्ति तथा सुसंस्कारित परिवारों के संयोग से आदर्श समाज
निर्माण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए दो अभियान है - (1) दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन (2) सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन ।
धर्म तन्त्र आधारित विविध
माध्यमों से लोक शिक्षण करना, गायत्री
सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ- सहकारिता युक्त सत्कर्म द्वारा सातों आन्दोलनों के माध्यम
से सामूहिक स्तर पर किए जाने वाले कार्यों द्वारा समाज निर्माण का प्रयास हो रहा है।
गुरुदेव ने युग परिवर्तन
के लिए युग निर्माण योजना के तहत सात क्रांतियों का आगाज किया जो सप्त क्रांतियों
के नाम से विख्यात हैं ।
ऐसा कहा जा सकता है कि अगर पूरी तरह इनका पालन किया जाए, तो भारत को फिर से जगत गुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता। ये
सात क्रांतियां हैं- साधना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलम्बन, नारी जागरण, पर्यावरण, दुर्व्यसन-कुरीति
उन्मूलन
1. साधना – सूर्य की किरणों का
ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र जप से शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक शक्ति का
व्यक्तिगत संचार व भगवान द्वारा प्रदत्त शक्तियों जैसे समय, विचार शक्ति, इंद्रिय
शक्ति व साधनों की शक्ति को
बचाना व उनका सदुपयोग करना
साधना यानी अपनी इंद्रियों
को बस में करना । अपनी साधक प्रवृत्ति को विकसित करना । इसके तहत गुरुदेव ने साधना के तीन आयाम बताए । उपासना
यानी ईश्वर के समीप बैठना, साधना यानी अपने मन को नियंत्रित करना और आराधना यानी ईश्वरीय
गुणों को धारण कर व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण मे अपना श्रम, समय, साधन लगाना
।
2. स्वास्थ्य - कहा जाता है कि स्वास्थ्य अगर खराब है, तो इंसान कुछ भी नहीं कर सकता । इसलिए इस क्रांति के तहत युग ऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए
कहा । इसके तहत गायत्री
परिवार लोगों को प्राकृतिक दिनचर्या अपनाने, योग व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान के माध्यम से स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करता है
। इसके साथ ही वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर जोर दिया
जाता है। स्वास्थ्य शिविर, योग
शिविर,
घर-घर योग व स्वास्थ्य के सूत्रों की स्थापना,
गोष्ठियों के माध्यम से आहार-विहार घरेलू
चिकित्सा, गमलों व मसालदानी मे स्वास्थ के प्रति जागरूकता, आयुर्वेद का प्रचार एवं स्थापना, बीमार पड़ने के पहले ही उपचार के सूत्र हृदयंगम कराना ।
3. शिक्षा - गुरुदेव ने शिक्षा के साथ विद्या का समन्वय करने का सिद्धान्त
प्रतिपादित किया ।
उन्होंने शिक्षा को संस्कार मूलक बनाने की बात कही । गुरूदेव कहते थे कि शिक्षा वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर व्यक्ति निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो
सकता है। आज देश में शिक्षा तो है, लेकिन विद्या यानी संस्कार नहीं है। इसके लिए संस्कार
शालाएं और भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जैसी मूल्यपरक शिक्षा को आगे बढ़ाने को
कहा। बाल संस्कार शाला, प्रौढ़
शिक्षा शाला, रात्रिकालीन प्रौढ़
पाठशाला,
भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा, व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर, कन्या शिविर के द्वारा संस्कार एवं संस्कृतिजन्य शिक्षा
हेतु प्रयास जिससे संस्कारिक ज्ञान के साथ-साथ जीवन विद्या का ज्ञान हो सके उसका
चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार उत्कृष्ट हो सके ।
4. स्वावलम्बन- गुरुदेव कहा करते थे कि बेरोजगारी सभी समस्याओं की जड़ है। इसके
लिए उन्होंने हर व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाने पर जोर दिया। उनके इस मिशन के तहत
युग निर्माण मिशन ने कुटीर उद्योगों को बढ़ाने के लिए नागरिकों को प्रशिक्षण देने
का काम शुरू किया। इसके अंतर्गत खादी ग्रामोद्योग, गोपालन, गोउत्पादन
साबुन,
मोमबत्ती, अगरबत्ती, प्लास्टिक मोल्डींग, स्क्रीन प्रिंटिंग मधुमक्खी पालन जैसे
कार्य सिखाए जाते हैं।
5. नारी जागरण- नारी को समर्थ व सशक्त बनाने हेतु प्रयास करना। उसे व्यक्तित्व निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के कार्य में प्रशिक्षित करके उसकी प्रतिभा व योग्यता का पूरा लाभ उठाना इस हेतु उसे संस्कारगत शिक्षा, गोष्ठियों, सभा सम्मेलनों के माध्यम से आगे लाना। उसे यज्ञ संस्कार व रचनात्मक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपना। गुरुदेव कहते थे कि नारियां परिवार की धुरी हैं। देश में हजारों महिला मंडलों और नारी संगठनों को स्थापित किया गया है । नारी जागरण आंदोलन द्वारा नारी को स्वस्थ, स