आज हम बच्चों की शिक्षा और शारीरिक स्वास्थ की ओर तो ध्यान देते है लेकिन उनके बौद्धिक, मानसिक, भावनात्मक एवं नैतिक स्वास्थ की ओर से अनभिज्ञ है । जिसके कारण उच्चशिक्षा प्राप्त करके भी हमारे बच्चे संस्कारो के अभाव मे चिन्तन, चरित्र और व्यव्हार में उत्कृष्टता, शालीनता, आदर्शवादिता एवं दैवी गुणो से वांचित हो रहें है । जिसका परिणाम परिवार, समाज एवं राष्ट्र मे अनैतिकता, भ्रष्टाचार पापाचार के रुप में आ रहा है ।

संस्कारवान पीढी़ हेतु उच्च शिक्षा के साथ भावी पीढी़ के चिन्तन मे उत्कृष्टता, चरित्र मे आदर्श वादिता एवं व्यव्हार मे शालीनता तथा दैवी गुणों का विकास आवश्यक है | यह विचार, भावनाओं, आचार- विचार, आहार विहार, घर एवं बाहर के  वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन से ही संभव है | गर्भ पूर्व तैयारी, गर्भावस्था, शिशु निर्माण (0-5) वर्ष, बाल निर्माण (6-12) वर्ष, किशोरावस्था (13-20) वर्ष  में पहुँचने तक उन्हे सुसंस्कृत एवं समुन्नत बनाने हेतु सम्पूर्ण मार्गदर्शन इस वेबसाइट में उपलब्ध है |

उद्देश्य

शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ भावी पीढ़ी का निर्माण |

लक्ष्य

मनुष्य में देवत्व का उदय, धरती पर स्वर्ग का अवतरण