भारतीय संस्कृति के अनुसार गृहस्थाश्रम में प्रवेश के पूर्व ब्रह्मचर्य आश्रम पालन द्वारा नव- दम्पत्ति को गृहस्थ के महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व एवं सुसंतति प्राप्ति हेतु शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार किया जाता है |
भगवान कृष्ण ने प्रद्युम्न को जन्म देने के लिए 12 वर्ष तक बद्रीनाथ आश्रम में, कार्तिकेय को जन्म देने हेतु भगवान शंकर को माता पार्वती के साथ, पांडवों को पैदा करने के लिए कुंती को तप करना पड़ा था | अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत की निराई गुड़ाई खाद पानी आदि की व्यवस्था करने के साथ-साथ अच्छे स्वस्थ बीज की व्यवस्था करनी पड़ती हैं | इसी प्रकार एक अच्छी मनचाही, सुसंस्कृत सुसम्मुन्नत, प्रखर प्रतिभाशाली, दिव्या संतान प्राप्त करने के लिए भी कुछ करना पड़ेगा | हमारे वैज्ञानिकों का भी एसा कहना है |
Saarland university, Germany के वैज्ञानिक Reik and Walter के शोध पत्र के अनुसार माता-पिता अपने बच्चों के जेनेटिक इंजीनियर होते हैं | जैसा उनका चिंतन, चरित्र, व्यवहार होता है, उनकी दिनचर्या होती है एवं आहार- विहार होता है वैसा ही उनके Gamete तैयार होते हैं, जिनके fertilization के पश्चात वैसी ही संतान उनको प्राप्त होती है | पुरुष का शुक्राणु (Sperm ) और स्त्री का अंडाणु (Ova) को तीन माह का समय परिपक्व होने के लिए लगता है | इस समय जैसा आहार- विहार, आचार-विचार एवं वातावरण होगा उसी स्तर का Gamete बनेगा | यह एक epigenetic प्रक्रिया है | अतः गर्भधारण के कम से कम तीन माह पूर्व तैयारी करनी आवश्यक है |
वैज्ञानिक Dr.Thomas R. Verny and Pamela Weintraub. के अनुसार conception के समय जैसा विचार और भावनाएं और वातावरण पति-पत्नी का होता है वैसी ही आत्मा उनके अंदर प्रवेश करती है | उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है कि महाभारत काल में राजा शांतनु और उनके पुत्रों चिंतरंगत एवं विचित्र वीर्य की मृत्यु के पश्चात, राज पाठ चलाने के लिए उत्तराधिकारी हेतु राजा शांतनु की पत्नी सत्यवती ने अपनी बड़ी बहू अंबिका और छोटी बहू अंबालिका का नियोग ऋषि व्यास से कराने का निश्चय किया | व्यास ऋषि को देखते ही अंबिका ने आंखें बंद कर ली जिसके फल स्वरुप उनके धृतराष्ट्र, अंधे पुत्र के रूप में पैदा हुए और छोटी बहू अंबालिका डर से पीली पड़ गई जिसके कारण उनका पुत्र पांडु रोगी पैदा हुए | अतः रानी ने फिर से अंबिका को नियोग करने हेतु कहा, अंबिका ने स्वयं ना जा कर अपनी दासी को भेज दिया | दासी ज्ञानी थी | उसने सोचा कि ऋषि व्यासजी से नियोग करने पर मुझे एक ऋषि पुत्र प्राप्त होगा | वह खुशी-खुशी गई | जिसके परिणामस्वरूप उसका पुत्र ज्ञानी विदुर के नाम से जाना जाता है |
उन्होंने यह भी अपने शोध पत्र में वर्णित किया है की conception के समय प्रेम, प्रसन्नता एवं शांति के वातावरण का प्रभाव बच्चों पर सकारात्मक पड़ता है | लेकिन किसी प्रकार की जल्दबाजी, अनचाहा व्यवहार, नशा, क्रोध, जैसा वातावरण होने से कुसंस्कारी संतान पैदा हो सकती है |
आज मेडिकल साइंस भी यह कहती है कि conception के तीन माह पूर्व ही शारीरिक तैयारी करनी चाहिए | यदि शरीर में फोलिक एसिड जिंक, B12 आदि माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी होती है तो बच्चा मानसिक रूप से रोगी पैदा हो सकता है | जैसे बिना मस्तिष्क का बच्चा (Anencephaly), रीड की हड्डी में ट्यूमर (Meningocele, Myelomeningocele) कहते हैं, ऐसे बच्चे अपाहिज पैदा होते हैं और शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो जाती है | इसलिए चिकित्सक जहां कई रक्त की जांच कराते हैं, इंजेक्शन टीके लगवाते हैं और दवाएं देते हैं यह केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए होता है |
लेकिन W.H.O के अनुसार “complete health is a state of physical, mental, social and spiritual well being” ऋषि परंपरा में यही हमारे ऋषियों का भी कहना है कि शारीरिक रूप से केवल स्वस्थ, बलवान नहीं बल्कि मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ चिंतन, चरित्र और व्यवहार वाला व्यक्ति ही जीवन में अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और वही अपने जीवन में सफल हो सकता है | संभवतः इसी कारण से चिकित्सक गर्भधारण के कम से कम 3 महीने पहले तैयारी करना आवश्यक बताते है|
अतः न केवल शारीरिक वरन मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से गर्भ पूर्व तैयारी के लिए एक जन जागरूकता कार्यक्रम गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार से “गर्भ – पूर्व तैयारी” के नाम से प्रारंभ किया गया है |