ऋषियों ने बताया कि गर्भधारण के समय जैसी दम्पत्ति कि सोच और भावनायें होती है वैसा ही जीव गर्भ मे आता है । गर्भोत्सव संस्कार प्रजनन विज्ञान का मनोविज्ञानिक, अध्यात्मिक एवं सामाजिक शिक्षण है । जिसमे गर्भवती माँ हेतु स्वस्थ, प्रसन्न, शालीन, आस्तिक एवं अनुकूल वातावरण बनाने, स्वस्थ, नियमित, सुव्यवस्थित दिनचर्या, गर्भावस्था मे योग, व्यायाम एवं प्राणायाम, सात्विक, संस्कारित एवं सन्तुलित भोजन खाने तथा गर्भसंवाद द्वारा गर्भस्थ शिशु मे सद्गुणों के आरोपण हेतु शिक्षण दिया जाता है ।
एक छोटे कर्मकाण्ड द्वारा घर परिवार के लोंगो की उपस्थिति में संकल्प लेने का उत्सव है जिसमें सभी का ध्यान गर्भ मे पल रहे शिशु के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक भावनात्मक एवं अध्यात्मिक स्वास्थ की ओर आकर्षित किया जाता है ।
यह अचेतन मस्तिष्क का एक प्रकार से सूक्ष्म इलाज है, जिसमे गर्भस्थ शिशु के अचेतन मस्तिष्क को परिष्कृत करने का सूक्ष्म इलाज किया जाता है ।
संस्कारवान पीढी़ बनाने में माँ के विचार, भावनाओं, खान पान, आहार विहार, घर एवं बाहर के वातावरण के विशेष योगदान के साथ, पति तथा परिवार के सदस्यो का भी प्रभाव बच्चे के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर पड़ता है ।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क सब से तेजी से बढ़ता है इस मस्तिष्क पर माँ के विचार एवं भावनाओ की छाप बच्चे के 80% व्यक्तित्व का निर्धारण कर देती है ।
प्रखर, प्रतिभाशाली, सद्गुणी, संस्कारित मनचाही सन्तान बनाने हेतु गर्भोत्सव संस्कार के माध्यम से एक जन जागरूकता कार्यक्रम शान्तिकुन्ज हरिद्वार से चलाया गया है; जिसका उद्देश्य है शरीर से स्वास्थ, मानसिक रूप से संतुलित, शांत, विवेकवान, भावनात्मक रूप से उच्च भावनाओं से सम्पन्न एवं आध्यात्मिक (नैतिक) रूप से पवित्र, प्रेम, समझदार, ईमानदार, जिम्मेदार, बहादुर, न्यायनिष्ठ, करुणा, ममता, उदारता, सहयोग, सहकार आदि गुणों से सम्पन्न दिव्य मन चाही संतान की प्राप्ति । जिसपर शोध कार्य भी संपन्न हो रहा है |
अतः इस गर्भोत्सव जन जागरूकता कार्यक्रम एवं गर्भ संस्कार द्वारा भावी संस्कारवान पीढी़ के सर्वांगीण नव निर्माण हेतु इस वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की सार्वभौमिक प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र का ही नही विश्व की भावी पीढी़ के नव निर्माण मे एक महान योगदान होगा ।
“आइये हम सब मिलकर एक सभ्य सज्जन पीढ़ी के निर्माण में अपना योगदान दे”